राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद भाग 1 – कक्षा 10 क्षितिज | विनम्रता बनाम क्रोध 🔥🙏

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – भाग 1 (अलौकिक शैली)

📘 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद – भाग 1 (अलौकिक शैली)

🌸 नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
🌸 होइहिं केउ एक दास तुम्हारा॥
🗣 राम (नम्रता से): जिसने शिवजी का धनुष तोड़ा, वह कोई आपका सेवक ही होगा।
शब्दअर्थ
नाथस्वामी / प्रभु
संभुशिवजी
धनुधनुष
भंजनिहारातोड़ने वाला
केउकोई
दाससेवक
🌿 भावार्थ: श्रीराम अत्यंत शांति से कहते हैं कि इस कार्य को करने वाला साधारण नहीं हो सकता – वह अवश्य आपका कोई सेवक होगा। उनकी विनम्रता यहाँ चमकती है।
🌸 आयसु काह कहिअ किन मोही।
🌸 सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
🗣 राम (शिष्टतापूर्वक): आपने मुझे बुलाया है, कृपया बताइए क्या आज्ञा है?
😠 परशुराम (क्रोध में): यह क्या उत्तर है? यह व्यंग्य है या विनम्रता?
शब्दअर्थ
आयसुआज्ञा
काहक्यों
कहिअकहें
मोहीमुझे
रिसाइक्रोधित होकर
मुनि कोहीमुनि परशुराम
🔥 भावार्थ: रामजी का शांत और सभ्य प्रश्न परशुराम को चुभ जाता है। वे इसे अपमान समझकर क्रोधित हो उठते हैं। यहाँ से संवाद में तनाव बढ़ता है।
🌸 सेवकु सो जौ करै सेवकाई।
🌸 अरिकर्म करि करिअ लराई॥
😡 परशुराम: जो सेवक बनकर भी शत्रु जैसा व्यवहार करे, उससे युद्ध करना ही धर्म है!
शब्दअर्थ
सेवकुसेवक
जौयदि
सेवकाईसेवा करना
अरिकर्मशत्रु का कार्य
करिअकरना चाहिए
लराईयुद्ध
⚔️ भावार्थ: परशुराम अब खुलकर आक्रमण की बात करते हैं। वे मान चुके हैं कि जिसने धनुष तोड़ा, वह विरोधी है, सेवक नहीं।
🌸 सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा।
🌸 सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
💢 परशुराम: हे राम! जिसने शिवजी का धनुष तोड़ा, वह मेरा शत्रु है – ठीक वैसे ही जैसे सहस्रबाहु था।
शब्दअर्थ
सुनहुसुनो
रामश्रीराम
जेहिजिसने
सिवधनुशिवजी का धनुष
तोरातोड़ा
सहसबाहुसहस्रबाहु (एक अत्याचारी राजा)
रिपुशत्रु
मोरामेरा
भावार्थ: अब परशुराम सीधा-सीधा श्रीराम को शत्रु मानते हैं। वे उस पर वैसा ही प्रतिशोध लेना चाहते हैं जैसे सहस्रबाहु पर लिया था।

🔚 भाग 1 का सारांश:

  • श्रीराम की वाणी में गहराई और विनम्रता है।
  • परशुराम हर बात को चुनौती समझते हैं।
  • यह संवाद अब शांति से युद्ध की ओर बढ़ रहा है।

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