सूरदास के पद – प्रश्न उत्तर संकलन (HTML)
🌸 सूरदास के पद – पिछले वर्षों के प्रश्न उत्तर (40-50 शब्दों में)
📘 पाठ परिचय: यह भक्ति कालीन कवि सूरदास द्वारा रचित पद हैं, जिनमें गोपियाँ श्रीकृष्ण से विरह के भावों को उद्धव के माध्यम से व्यक्त करती हैं।
🌺 पद 1: “ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी...”
📅 वर्ष |
❓ प्रश्न |
✅ उत्तर |
2019 (CBSE) |
गोपियाँ ऊधौ को ‘अति बड़भागी’ क्यों कहती हैं? |
गोपियाँ ऊधौ को इसलिए ‘अति बड़भागी’ कहती हैं क्योंकि वे श्रीकृष्ण के निकट रहते हैं। गोपियाँ कृष्ण-विरह से पीड़ित हैं और आश्चर्य करती हैं कि ऊधौ का मन कृष्ण में अनुरक्त क्यों नहीं है। |
2018 (CBSE) |
“पुरइनि पात रहत जल भीतर…” – उपमा का आशय स्पष्ट करें। |
इस पंक्ति में ऊधौ के प्रेम को सतही बताया गया है। जैसे कमल का पत्ता जल में रहकर भी गीला नहीं होता, वैसे ही ऊधौ कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम से प्रभावित नहीं होते। |
2017 (CBSE) |
“ज्यों जल माहँ तेल की गागरि…” – भावना स्पष्ट करें। |
यह उपमा ऊधौ की भावशून्यता को दर्शाती है। जैसे तेल पानी में नहीं घुलता, वैसे ही ऊधौ कृष्ण के प्रेम में नहीं डूबते। गोपियाँ उनकी निष्ठुरता पर व्यंग्य करती हैं। |
2016 (CBSE) |
“प्रीति नदी मैं पाउँ न बोरयो…” – भाव स्पष्ट करें। |
गोपियाँ कहती हैं कि ऊधौ का हृदय प्रेम की नदी में कभी डूबा ही नहीं। वह कृष्ण-प्रेम को नहीं समझता। इससे उसकी भावहीनता और भक्ति से दूरी प्रकट होती है। |
🌿 पद 2: “मन की मन ही माँझ रही...”
📅 वर्ष |
❓ प्रश्न |
✅ उत्तर |
2024 (CBSE) |
“मन की मन ही माँझ रही” – क्या आशय है? |
गोपियाँ कृष्ण-विरह की पीड़ा को अपने मन में ही रखती हैं। वे जानती हैं कि कोई भी उनकी भावना को नहीं समझ सकता, इसलिए वे मौन सहन करती हैं। |
2022 (CBSE) |
गोपियाँ अपनी पीड़ा क्यों नहीं कहतीं? |
गोपियों को लगता है कि कोई भी उनकी गहन भावना को समझ नहीं पाएगा, इसलिए वे मन की पीड़ा को बाहर नहीं लातीं। वे मौन में ही सब झेलती हैं। |
2019 (CBSE) |
‘बिरहिनि बिरह दही’ – भाव स्पष्ट करें। |
गोपियाँ कृष्ण-विरह में पीड़ित हैं और उनकी अवस्था दही जैसी जम चुकी है। यह उपमा उनकी गहन तड़प और स्थायी प्रेम की पीड़ा को दर्शाती है। |
🌻 पद 3: “हमारैं हरि हारिल की लकरी...”
📅 वर्ष |
❓ प्रश्न |
✅ उत्तर |
2023 (CBSE) |
“हमारैं हरि हारिल की लकरी” – उपमा का अर्थ बताइए। |
गोपियाँ कहती हैं कि उनका कृष्ण से प्रेम हारिल पक्षी की लकड़ी जैसा है, जो दृढ़ और अडिग है। वे किसी भी परिस्थिति में कृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं। |
2020 (MP Board) |
“जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि…” – भावना स्पष्ट करें। |
गोपियाँ बताती हैं कि वे हर समय कृष्ण को याद करती हैं – जागते, सोते, स्वप्न में भी। उनका तन-मन-वचन पूर्णत: कृष्णमय हो गया है। |
2017 (CBSE) |
“ज्यों करुई ककरी” – का आशय स्पष्ट करें। |
गोपियाँ कहती हैं कि उद्धव के योग-संदेश उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान हैं। यह बात उन्हें आनंद नहीं, बल्कि और अधिक पीड़ा देती है। |
🌳 पद 4: “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए...”
📅 वर्ष |
❓ प्रश्न |
✅ उत्तर |
2024 (CBSE) |
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” – पंक्ति का आशय स्पष्ट करें। |
गोपियाँ कृष्ण पर व्यंग्य करती हैं कि वे अब प्रेम को त्यागकर राजनीति सीख आए हैं। वे भावहीन हो गए हैं और प्रजा के प्रेम को नहीं समझते। |
2022 (CBSE) |
“राज धरम तौ यहै सूर…” – पंक्ति का अर्थ क्या है? |
सूरदास कहते हैं कि सच्चा राजधर्म वही है जिसमें प्रजा सुखी रहे। गोपियाँ कृष्ण को याद दिलाती हैं कि उन्होंने अपने भक्तों को कष्ट देकर धर्म नहीं निभाया। |
2019 (MP Board) |
गोपियाँ कृष्ण की आलोचना क्यों करती हैं? |
कृष्ण ने प्रेमियों का त्याग किया और योग-संदेश भेजा। गोपियाँ उन्हें नीतिवान और नीति की आड़ में भावशून्य मानती हैं, इसलिए वे उन्हें दोष देती हैं। |
📌 नोट: सभी उत्तर CBSE/MP बोर्ड के अनुसार 40–50 शब्दों में परीक्षा उपयोगी शैली में दिए गए हैं। छात्रों के लिए यह संग्रह अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा।
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