राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – भाग 1 | कक्षा 10 क्षितिज | Hindi ke Mitra

राम, लक्ष्मण और परशुराम संवाद | कक्षा 10 क्षितिज

🌺 राम, लक्ष्मण और परशुराम संवाद 🌺

(कक्षा 10 – क्षितिज भाग 2)


📜 परिचय:

यह प्रसंग रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड से लिया गया है, जहाँ भगवान राम द्वारा शिवधनुष तोड़े जाने के बाद परशुराम क्रोधित होकर जनक दरबार में आते हैं। इस संवाद में राम की विनम्रता, लक्ष्मण की व्यंग्य शैली और परशुराम के तेजस्वी क्रोध का सुंदर चित्रण हुआ है।


🌸 चौपाई 1

नाथ संभुधनु भंजनिहारा ।
होइहि केउ एक दास तुम्हारा ॥

🗣️ वक्ता: श्रीराम

📝 शब्दार्थ:
नाथ = स्वामी,
शंभु = शिव,
धनु = धनुष,
भंजनिहारा = तोड़ने वाला,
होइहि = होगा,
केउ = कोई,
दास = सेवक

💡 आशय: हे स्वामी! जिसने शिवजी का धनुष तोड़ा है, वह कोई आपका सेवक ही होगा।

🌷 भावार्थ: रामजी परशुराम के क्रोध को शांत करने हेतु अत्यंत विनम्रता से कहते हैं कि यदि कोई शिव धनुष तोड़ने वाला है, तो वह अवश्य आपका भक्त और सेवक ही होगा।

🌸 चौपाई 2

आयेसु काह कहिअ किन मोही ।
सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ॥

🗣️ वक्ता: तुलसीदास (कथन वर्णन)

📝 शब्दार्थ:
आयेसु = आने का कारण,
कहिअ = कहें,
मोही = मुझे,
रिसाइ = क्रोधित होकर,
कोही = परशुराम

💡 आशय: राम के शब्द सुनकर परशुराम क्रोधित होकर बोले –

🌷 भावार्थ: राम की विनम्रता को परशुराम चुनौती समझते हैं और और अधिक क्रोध में आकर उत्तर देते हैं।

🌸 चौपाई 3

सेवकु सो जो करै सेवकाई ।
अरिकरनी करि करिअ लराई ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
सेवकु = सेवक,
सेवकाई = सेवा,
अरिकरनी = शत्रु का काम,
करिअ = करना,
लराई = युद्ध

💡 आशय: जो सेवा करे वही सेवक कहलाता है, शत्रुता करोगे तो युद्ध करना पड़ेगा।

🌷 भावार्थ: परशुराम स्पष्ट करते हैं कि सेवा की जगह अगर किसी ने शत्रुवत कार्य किया है, तो वह संघर्ष के लिए तैयार रहे।

🌸 चौपाई 4

सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा ।
सहसबाहु सम सो रिपु मोरा ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
सुनहु = सुनो,
जेहि = जिसने,
सिवधनु = शिवजी का धनुष,
तोरा = तोड़ा,
सहसबाहु = हज़ार भुजाओं वाला राजा,
रिपु = शत्रु

💡 आशय: जिसने शिवधनुष तोड़ा, वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है।

🌷 भावार्थ: परशुराम इस कृत्य को निजी अपमान मानते हैं और राम से कहते हैं कि वह व्यक्ति उनका शत्रु है।

🌸 चौपाई 5

सो बिलगाउ बिहाइ समाजा ।
न त मारे जैहहिं सब राजा ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
सो = वह व्यक्ति,
बिलगाउ = अलग कर दो,
बिहाइ = छोड़कर,
समाजा = समाज/सभा,
मारे जैहहिं = मारे जाएँगे

💡 आशय: जिसने धनुष तोड़ा, वह सभा से अलग हो जाए, नहीं तो सब राजा मारे जाएँगे।

🌷 भावार्थ: परशुराम सभा में उग्र चेतावनी देते हैं कि दोषी स्वयं सामने आए अन्यथा सभा का नाश कर देंगे।

🌸 चौपाई 6

सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने ।
बोले परसुधरहि अवमाने ॥

🗣️ वक्ता: तुलसीदास (कथन वर्णन)

📝 शब्दार्थ:
मुनिबचन = मुनि के वचन,
मुसुकाने = मुस्कराए,
परसुधर = परशुराम,
अवमाने = अपमान करते हुए

💡 आशय: परशुराम की बात सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए और उन्हें ताना मारते हुए बोले।

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण की बुद्धि और व्यंग्य भरी शैली अब सक्रिय हो जाती है।

🌸 चौपाई 7

बहु धनुही तोरी लरिकाईं ।
कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥

🗣️ वक्ता: लक्ष्मण

📝 शब्दार्थ:
बहु = बहुत,
लरिकाईं = बचपन में,
रिस = क्रोध,
गोसाईं = संत/महात्मा

💡 आशय: बचपन में हमने बहुत धनुष तोड़े, फिर भी कोई संत इतना क्रोधित नहीं हुआ।

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण परशुराम का उपहास करते हुए कह रहे हैं कि यह क्रोध अत्यधिक और हास्यास्पद है।

🌸 चौपाई 8

येहि धनु पर ममता केहि हेतू ।
सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू ॥

🗣️ वक्ता: लक्ष्मण

📝 शब्दार्थ:
ममता = मोह/लगाव,
हेतू = कारण,
भृगुकुलकेतू = परशुराम

💡 आशय: इस धनुष के प्रति इतना लगाव किस कारण है?

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण परशुराम की भावना पर प्रश्न उठाते हैं कि इस विशेष धनुष से उन्हें इतना मोह क्यों है।

📜 दोहा

रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार ।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
नृपबालक = राजा का पुत्र,
कालबस = मृत्यु के प्रभाव में,
त्रिपुरारि = शिव,
बिदित = प्रसिद्ध

💡 भावार्थ: हे राजपुत्र! मृत्यु तुझे बोलने पर मजबूर कर रही है, तू नहीं जानता कि यह कोई साधारण धनुष नहीं, स्वयं शिव का त्रिपुरारि धनुष है, जो सारे संसार में विख्यात है।


📌 निष्कर्ष:

यह संवाद केवल एक वाद-विवाद नहीं, अपितु संस्कार, विनम्रता, व्यंग्य, और धर्म की परीक्षा है। जहाँ श्रीराम धैर्य और मर्यादा के प्रतीक हैं, वहीं लक्ष्मण तेज और बुद्धि के। परशुराम जी की कठोरता, उन्हें धर्म के लिए शस्त्र उठाने वाले ऋषि के रूप में दर्शाती है।


“विनम्रता और धैर्य ही सच्चे वीर की पहचान है।”

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