राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – भाग 3 | कक्षा 10 क्षितिज | Hindi ke Mitra
✨ राम, लक्ष्मण और परशुराम संवाद – भाग 3 ✨
📘 कक्षा 10 – क्षितिज
📖 परिचय:
शिव धनुष टूटने के बाद जनकसभा में परशुराम का क्रोध चरम पर था। लक्ष्मण जी अपने साहस, व्यंग्य और संयम से जिस तरह परशुराम जी का सामना करते हैं, वह संवाद हिंदी साहित्य में वीर रस का एक अनुपम उदाहरण है। प्रस्तुत है संवाद का तीसरा भाग।
🌼 चौपाई
बिहसि लखनु बोले मृदु बानी ।
अहो मुनीसु महाभट मानी ॥
🗣️ वक्ता: लक्ष्मण
📝 शब्दार्थ: बिहसि = हँसकर, मृदु बानी = कोमल वाणी, मुनीसु = श्रेष्ठ मुनि, महाभट = महान योद्धा, मानी = मानने वाले
💡 आशय: लक्ष्मण हँसते हुए कोमल वाणी में कहते हैं – हे मुनिवर! आप तो अपने आप को महान योद्धा मानते हैं।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण अपने व्यंग्यपूर्ण अंदाज में परशुराम के क्रोध को चुनौती दे रहे हैं।
🌼 चौपाई
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु ।
चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥
📝 शब्दार्थ: पुनि पुनि = बार-बार, कुठारु = फरसा, फूँकि = फूँक से, पहारू = पहाड़
💡 आशय: आप बार-बार मुझे फरसा दिखा रहे हैं, जैसे फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हों।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण परशुराम के आक्रोश को मज़ाकिया रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
🌼 चौपाई
इहाँ कुम्हड़बतिआ कोउ नाहीं ।
जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
📝 शब्दार्थ: कुम्हड़बतिआ = सीताफल, तरजनी = तर्जनी उंगली
💡 आशय: यहाँ कोई सीताफल जैसा कमजोर नहीं है जो आपकी तर्जनी देखकर ही मर जाए।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण व्यंग्यपूर्वक कह रहे हैं कि हम डरपोक नहीं हैं, जो आपकी ऊँगली देखकर भाग जाएँ।
🌼 चौपाई
देखि कुठारु सरासन बाना ।
मैं कछु कहा सहित अभिमाना ॥
📝 शब्दार्थ: सरासन = धनुष, अभिमाना = अभिमान के साथ
💡 आशय: मैंने आपके हाथ में फरसा और धनुष देखकर कुछ अभिमानपूर्वक कह दिया।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण अपने तीखे वचनों को क्षत्रिय धर्म के अनुसार उचित ठहराते हैं।
🌼 चौपाई
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी ।
जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी ॥
📝 शब्दार्थ: भृगुसुत = भृगु ऋषि के पुत्र (परशुराम), जनेउ = यज्ञोपवीत, रिस = क्रोध
💡 आशय: मैंने आपको ब्राह्मण समझकर जो कुछ भी आपने कहा वह सह लिया।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण संकेत करते हैं कि यदि आप ब्राह्मण न होते तो अब तक युद्ध आरंभ हो चुका होता।
🌼 चौपाई
सुर महिसुर हरिजन अरु गाईं ।
हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ॥
📝 शब्दार्थ: सुर = देवता, महिसुर = ब्राह्मण, हरिजन = भगवान के भक्त
💡 आशय: हमारे कुल की मर्यादा है कि देव, ब्राह्मण, गाएँ और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाते।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण अपने कुल धर्म की मर्यादा बताते हुए संयम और क्षमा की बात करते हैं।
🌼 चौपाई
बधें पापु अपकीरति हारें ।
मारतहू पा परिअ तुम्हारें ॥
📝 शब्दार्थ: बधें = मारने से, पापु = पाप, अपकीरति = बदनामी
💡 आशय: इन्हें मारने से पाप लगता है और हारने पर बदनामी होती है, इसलिए आपके पैर पकड़ लेना ही उचित है।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण व्यंग्य से परशुराम को यह दिखा रहे हैं कि आप चाहे जितना क्रोधित हों, मैं आपकी मर्यादा का पालन करता हूँ।
🌼 चौपाई
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा ।
ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
📝 शब्दार्थ: कोटि = करोड़, कुलिस = वज्र, ब्यर्थ = व्यर्थ
💡 आशय: आपके वचन करोड़ वज्र के समान कठोर हैं, फिर भी आप व्यर्थ में हथियार लिए घूम रहे हैं।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण का व्यंग्य चरम पर है – आपके शब्द ही पर्याप्त हैं, शस्त्रों की क्या आवश्यकता?
📜 दोहा
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर ।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर ॥
📝 शब्दार्थ: अनुचित = अनुचित वचन, सरोष = क्रोधित, गिरा = वाणी
💡 आशय: यदि मैंने कुछ अनुचित कह दिया हो तो क्षमा करें, लेकिन परशुराम अब गंभीर और क्रोधित स्वर में उत्तर देने लगे।
🌷 भावार्थ: लक्ष्मण का उद्देश्य क्रोध भड़काना नहीं था, परन्तु अब परशुराम का धैर्य समाप्त हो चुका था।
📌 निष्कर्ष:
इस संवाद में लक्ष्मण जी का संयमित व्यंग्य और परशुराम जी का रौद्र स्वभाव दोनों टकराते हैं। एक ओर वीरता और साहस है, दूसरी ओर तपस्विता और गर्व। यह दृश्य हमें शिष्ट व्यंग्य और मर्यादा की श्रेष्ठता सिखाता है।
🌿 वाणी में मर्यादा हो, तो क्रोध भी पराजित हो जाता है 🌿
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