राम लक्ष्मण परशुराम संवाद – भाग 2 | कक्षा 10 क्षितिज | Hindi ke Mitra

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद - भाग 2 | कक्षा 10

🌸 राम, लक्ष्मण और परशुराम संवाद – भाग 2 🌸

(कक्षा 10 – क्षितिज)


📖 परिचय:

यह प्रसंग उस समय का है जब भगवान राम ने जनकपुर में भगवान शिव का धनुष तोड़ा। यह देखकर क्रोधाग्नि से जलते हुए परशुराम जी सभा में आते हैं और वहां खड़े लक्ष्मण जी व्यंग्य और बुद्धि से भरी बातों के माध्यम से उनका सामना करते हैं।


🌼 चौपाई

लखन कहा हसि हमरे जाना ।
सुनहु देव सब धनुष समाना ॥

🗣️ वक्ता: लक्ष्मण

📝 शब्दार्थ:
लखन = लक्ष्मण,
हसि = हँसकर,
हमरे जाना = मेरी समझ में,
देव = देवता/ऋषि,
समाना = समान

💡 आशय: हे देव! मेरी समझ में तो सभी धनुष एक जैसे होते हैं।

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि इसमें इतनी उत्तेजना की क्या बात है, शिव धनुष भी अन्य धनुषों जैसा ही है।

🌼 चौपाई

का छति लाभु जून धनु तोरें ।
देखा राम नयन के भोरें ॥

🗣️ वक्ता: लक्ष्मण

📝 शब्दार्थ:
छति = हानि,
लाभु = लाभ,
जून = पुराना,
नयन के भोरें = आँखों के सामने

💡 आशय: इस पुराने धनुष के टूटने से क्या हानि या लाभ हुआ? राम ने तो इसे बस देखा ही था।

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण व्यंग्यपूर्वक कह रहे हैं कि यह तो पुराना धनुष था, क्या बड़ा नुकसान हो गया? और तो और, राम ने तो बस देखा था, छूते ही टूट गया!

🌼 चौपाई

छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू ।
मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ॥

🗣️ वक्ता: लक्ष्मण

📝 शब्दार्थ:
छुअत = छूते ही,
रघुपतिहु = राम,
दोसू = दोष,
बिनु काज = बिना कारण,
रोसू = क्रोध

💡 आशय: जब धनुष खुद-ब-खुद टूट गया तो राम का क्या दोष? बिना कारण क्रोध क्यों?

🌷 भावार्थ: लक्ष्मण परशुराम को चिढ़ाते हुए कहते हैं कि जब राम ने बस छुआ और धनुष टूट गया, तो इसमें क्रोध क्यों?

🌼 चौपाई

बोले चितै परसु की ओरा ।
रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
परसु = फरसा,
सठ = मूर्ख,
सुभाउ = स्वभाव

💡 आशय: परशुराम अपने फरसे की ओर देखते हुए बोले – मूर्ख! तू मेरे स्वभाव को नहीं जानता।

🌋 भावार्थ: लक्ष्मण के व्यंग्य से परशुराम का गुस्सा और बढ़ जाता है।

🌼 चौपाई

बालकु बोलि बधौं नहि तोही ।
केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
बालकु = बालक,
बधौं = मारना,
जड़ = मूर्ख

💡 आशय: मैं तुझे बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ, लेकिन तू मुझे केवल साधारण मुनि समझता है?

🔥 भावार्थ: परशुराम क्रोध में कहते हैं कि वो क्षमा कर रहे हैं, परन्तु वे साधारण ऋषि नहीं हैं।

🌼 चौपाई

बाल ब्रह्मचारी अति कोही ।
बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
कोही = क्रोधी,
बिस्वबिदित = विश्व प्रसिद्ध,
द्रोही = शत्रु

💡 आशय: मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ और क्षत्रियों का शत्रु – यह बात जगप्रसिद्ध है।

🌋 भावार्थ: परशुराम अपनी उग्र और यशस्वी पहचान बताते हैं – एक क्रोधित ब्रह्मचारी और क्षत्रिय-विरोधी योद्धा।

🌼 चौपाई

भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही ।
बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
भुजबल = भुजाओं का बल,
महिदेव = ब्राह्मण

💡 आशय: मैंने अपने बल से पृथ्वी को कई बार राजाओं से खाली करके ब्राह्मणों को दान में दे दिया।

⚔️ भावार्थ: परशुराम अपने पराक्रम और बलिदान का परिचय दे रहे हैं।

🌼 चौपाई

सहसबाहुभुज छेदनिहारा ।
परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
सहसबाहु = सहस्रबाहु (हज़ार भुजाओं वाला),
छेदनिहारा = काटने वाला,
परसु = फरसा,
महीपकुमारा = राजकुमार

💡 आशय: हे राजकुमार! मेरे इस फरसे को देखो, जिससे मैंने सहस्रबाहु की भुजाएँ काट डाली थीं।

🌋 भावार्थ: परशुराम लक्ष्मण को चेतावनी दे रहे हैं – मेरा इतिहास देख, और आगे सोच।

📜 दोहा

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर ।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥

🗣️ वक्ता: परशुराम

📝 शब्दार्थ:
सोचबस = चिंता में,
महीसकिसोर = राजकुमार,
अर्भक = भ्रूण,
दलन = नाश

💡 भावार्थ: अरे राजपुत्र! अपने माता-पिता को चिंता में मत डाल। मेरा फरसा इतना भयंकर है कि गर्भस्थ शिशु का भी नाश कर देता है।


📌 निष्कर्ष:

यह संवाद क्रोध, व्यंग्य, मर्यादा और पराक्रम का अद्भुत मिश्रण है। लक्ष्मण की तीव्र बुद्धि और परशुराम के अग्निवत स्वभाव का टकराव पाठकों को शौर्य और विवेक की गहराइयों में ले जाता है।


🌿 जहां साहस, वहां मर्यादा और ज्ञान – यही रामायण का संदेश है। 🌿

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